इकबाल मेहंदी काज़मी की गज़लें
शान खरीदिये
आइये इस दुकान से शान खरीदिये ।
अपने लिए थोड़ी सी पहचान खरीदिये।।
जीत जाएंगे आप हर लड़ाई को ।
इंसान रूपी थोड़े से शैतान खरीदिये ।।
कौन बोलेगा भला,चाहे जो कीजिये ।
कुछ ख़ाकी वर्दी वाले इंसान खरीदिये।।
सच्चाई आपके सामने जो आती हो ।
दौलत -के ज़ोर से ईमान खरीदिये ।।
आप, बनेंगे राजा, इस ज़माने के ।
हर गरीब का बस मकान खरीदिये ।।
आपके ज़ुल्मों पर पर्दा ही रहेगा ।
चाहें जिस अबला की आन खरीदिये ।।
क़त्ल कीजिए बाज़ार में,और घूमिये ।
बस चन्द गवाहों की ज़ुबान खरीदिये।।
सारा समाज भी आपका क्या बिगाड़ेगा।
जज का अपने हक़ में बयान खरीदिये।।
“मेंहदी” हक़ीक़त जो तूने दिखा दिया ।
अब आप छुपने के लिए स्थान खरीदिये।।
इक़बाल मेंहदी काज़मी
पलटी तूने नक़ाब तो
पलटी तूने नक़ाब तो मुझकों गुमां हुआ।
जैसे कि चाँद बादल से जलवानुमा हुआ।।
तेरी चमक के सामने पलकें ना उठ सकीं।
दीदार की चाहत थी, पर वो ही ना हुआ।।
रुख़ पर निग़ाह कर-के हो लेते शादमान।
ऐसा करम ये आपका हम-पर कहाँ हुआ।।
आहट को पाकर तेरी धड़क जाते हैं पत्थर।
सारे जहाँ में एक- क्या तू ही जवां हुआ।।
हर-एक क़दम वो ही बढ़ाता गया उल्फ़त।
जो कुछ,आज-तक हमारे दरमियाँ हुआ।।
अब आकर तुम ही मेरी महफ़िल सजाओगे।
वो पालने-वाला जो अग़र मेहरबां हुआ।।
“मेंहदी”की क़सम अपने ही दिल मे इसे रखना।
मेरी क़लम से आप-पर जो कुछ बयां हुआ।।
इक़बाल मेंहदी काज़मी
जिंदगी
दुनिया में कब किसी से संभलती है जिंदगी
मुट्ठी की रेत जैसी फ़िसलती है जिंदगी ।।
लगता है बढ़ रही है, है ऐसा नहीं मग़र
हर लम्हा ईक शमाँ सी पिघलती है जिंदगी।।
रोटी, मकान, कपड़ा और कुछ आन-बान हो
इस भाग-दौड़ में ही निकलती है जिंदगी।।
रहती है हर घड़ी, ये मोहताज़ वक़्त की
अपने हिसाब से कहां चलती है जिंदगी।।
चाहे नसीब इसको सिकंदर ही बना दे
कितना ही ज़र मिले पर मचलती है जिंदगी।।
छू आए चाहे जा-कर ये ख़ुद आसमान को
सोती है क़ब्र में या फ़िर जलती है जिंदगी।।
इक़बाल मेंहदी काज़मी
जलते रहें शमां से
ता–उम्र ही रहें जो हम –नाकाम क्या करें ।
जलते रहें शमां से हर एक शाम क्या करें ।।
आएगा ना जवाब ये मालूम था मग़र ।
भेजें है हमनें रोज़ ही पैगाम क्या करें ।।
लिखा ही नहीं था जब मुक़द्दर में आसमां ।
इस वास्ते रहे है हम –गुमनाम क्या करें ।।
रुसवाईयाँ ज़माने की सर अपने ओढ़ ली ।
बदनाम किसी औऱ का अब नाम क्या करें ।।
जब तक रहे ज़मी पे ना हम पूरी कर सकें ।
अब अपनी हसरतों का हम अंजाम क्या करें ।।
पल पल तेरी तलाश,औऱ हर पल तेरा ख़्याल।
अपना फक्त यहीं तो है बस काम क्या करें ।।
‘मेंहदी‘ बड़े सुकूँ से जब सोना है क़ब्र में ।
जीते जी फ़िर इस दहर में आराम क्या करें ।।
इक़बाल मेंहदी काज़मी

कवि राजेन्द्र अवस्थी किंकर
नशा करेगा
नशा करेगा एक दिन ,
तन का सत्यानाश ।
साथ नहीं देगा कोई ,
कर ले तू विश्वाश ।
कर ले तू विश्वाश ,
मुश्किल हो जाएगा जीना ।
दारू सिगरेट बीड़ी ,
इसको कभी न पीना ।
पिया अगर तो वने ,
केंसर टी वी प्यारे ।
कह किंकर फिर श्वास में …

प्रस्तुति – संगीता शर्मा
कोरोना लॉक-डाउन
जीतनी है जंग अगर ज़िन्दगी की
रुकिये घरो में ,
परिवार के साथ समय बिताइये
वक़्त कठिन है
खतरा है हर तरफ
देश ही नहीं,
विदेश भी है, व्याधि ग्रस्त
वक्त की नजाकत को समझ जाइये
जीतनी है जंग अगर जिन्दगी की
रुकिये घरों में,
परिवार के साथ समय बिताइये
मौत कर रही है
ताण्डव हर तरफ….
प्रस्तुति – संगीता शर्मा
